अकेले ही निकल पड़ी थी अंजान लोग अंजान सा शहर जंहा चीजें भी थी अंजानी घर अंजाना भाषा भी थी कुछ कुछ बेगानी उसपे ये शर्त जिंदगी की सबको अपना बनाना है खुद चाहे रोते हुए पर सबका दिल जीत जाना है सबको खुश कर के भी क्या है मैने पाया जब जब देखा पीछे मूड के अंजान रास्ते पे खुद को अकेला ही पाया जिंदगी ने हर जगह दो रास्ते दिखाये उसपे विडम्बना ये की हम हमेशा रास्ता गलत ही चुनते आये ©Sumi ps@gmail.com #Anger#trending#thought#nojoto