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"कबीर" प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय । लो

"कबीर"

प्रेम पियाला जो पिए, सिस दक्षिणा देय ।

लोभी शीश न दे सके, नाम प्रेम का लेय ।

भावार्थ: जिसको ईश्वर प्रेम और भक्ति का प्रेम पाना है उसे अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा को त्यागना होगा। लालची इंसान अपना शीशकाम, क्रोध, भय, इच्छा तो त्याग नहीं सकता लेकिन प्रेम पाने की उम्मीद रखता है।













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