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अवसर साल से दलित राजनीति शिविर से लिखें आलेख में स

अवसर साल से दलित राजनीति शिविर से लिखें आलेख में संजय गुप्ता ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं इनमें से एक प्रत्याशी चयन में कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका होनी चाहिए इसके लिए उन्होंने अमेरिका के प्राइमरी क्रिया का उदाहरण दिया है इस पार्टी में सही मायने में आंतरिक लोकतंत्र स्थापित होगा जिसके गौरव आओ इन दिनों देखने को मिल रहा है सबसे अहम है जो पार्टियां अपने दल में अतिरिक्त लोकतंत्र होने का दावा करती है और कार्यकर्ताओं को खास महत्व देने की बात करती हैं अगर उन्हें ही भी जातीय संकरण संसाधन के ऐसे ही आया था दलबदलू नेता ऊपर निर्भर रहना पड़ा तो यह बेहद चिंताजनक होगा इसलिए बदलाव कि ऐसे काम ही सामने आती है जैसे नेता के क्षेत्र में जनता निराश रहती हैं दल और शिक्षामित्रों के पतन के कारण मतदाताओं को उन्हीं द्वारा स्वीकार करना पड़ता है कार्यकर्ताओं की भी अपेक्षा होती है आजकल राजनीति में जाति धर्म के नाम पर विचारों की मांग खूब होती है सवाल उठता है कि समावेश राजनीति की हिमायती करने वाले दलों के पास संबंधित जातियों को आकर्षित करने के लिए खुद के चेहरे क्यों नहीं होते जाती भारतीय समाज का यथार्थ है मगर इसे एक धागे में पिरोने की वजह दोहन की परवर्ती राजनेताओं में पाई जाती है जबकि मौजूद सरकार के तमाम जून कल्याणकारी योजनाओं का लाभ कभी-कभी जाति धर्म की गरीब तबकों को भी मिलना चाहिए

©Ek villain # प्रत्याशी चयन में सक्रिय रहे कार्यकर्ता

#Walk
अवसर साल से दलित राजनीति शिविर से लिखें आलेख में संजय गुप्ता ने कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं इनमें से एक प्रत्याशी चयन में कार्यकर्ताओं की अहम भूमिका होनी चाहिए इसके लिए उन्होंने अमेरिका के प्राइमरी क्रिया का उदाहरण दिया है इस पार्टी में सही मायने में आंतरिक लोकतंत्र स्थापित होगा जिसके गौरव आओ इन दिनों देखने को मिल रहा है सबसे अहम है जो पार्टियां अपने दल में अतिरिक्त लोकतंत्र होने का दावा करती है और कार्यकर्ताओं को खास महत्व देने की बात करती हैं अगर उन्हें ही भी जातीय संकरण संसाधन के ऐसे ही आया था दलबदलू नेता ऊपर निर्भर रहना पड़ा तो यह बेहद चिंताजनक होगा इसलिए बदलाव कि ऐसे काम ही सामने आती है जैसे नेता के क्षेत्र में जनता निराश रहती हैं दल और शिक्षामित्रों के पतन के कारण मतदाताओं को उन्हीं द्वारा स्वीकार करना पड़ता है कार्यकर्ताओं की भी अपेक्षा होती है आजकल राजनीति में जाति धर्म के नाम पर विचारों की मांग खूब होती है सवाल उठता है कि समावेश राजनीति की हिमायती करने वाले दलों के पास संबंधित जातियों को आकर्षित करने के लिए खुद के चेहरे क्यों नहीं होते जाती भारतीय समाज का यथार्थ है मगर इसे एक धागे में पिरोने की वजह दोहन की परवर्ती राजनेताओं में पाई जाती है जबकि मौजूद सरकार के तमाम जून कल्याणकारी योजनाओं का लाभ कभी-कभी जाति धर्म की गरीब तबकों को भी मिलना चाहिए

©Ek villain # प्रत्याशी चयन में सक्रिय रहे कार्यकर्ता

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Ek villain

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