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मुझे आज भी याद है अरब की।

मुझे   आज       भी   याद      है    अरब     की। 
 उन शहज़ादियों का वो पर्दानशी होकर चलना ।
हररोज़     चेहरे           का   नकाब      बदलना ,
बुर्क़े मे    भी अजब ज़माल    लगती      थी  वो ।
मैं मक्का की सड़कों पर जब भी टहलने को निकलता
मुझे        हंसकर      पास     बुलाती   थी   वो ।
मैं गुलशन में बैठने    हरशाम  जाया करता था,
सदियां गुज़रेगी मैं न भूलूंगा उसे वो न भूलेगी मुझे
ऐसा     मुझसे    कहा       करती     थी    वो।
मै दोपहर को जब उसके घर के रास्ते होकर गुजरता 
अपने   घर   की     खिड़कियों   के   परदे  से 
चुपके    से      मुझ देखा      करती   थी   वो। 
जब सारा आसमान  सितारों  से सजा    होता
 और           चाँद      भी       पूरा          होता 
ऐसी चांदनी रात में मुझसे  मिला करती थी वो।।
लेखक = शेखर सुमन मेघवाल (पुष्कर)
Write by shekhar suman meghwal

©Shekhar suman Meghwal shsbbssh
मुझे   आज       भी   याद      है    अरब     की। 
 उन शहज़ादियों का वो पर्दानशी होकर चलना ।
हररोज़     चेहरे           का   नकाब      बदलना ,
बुर्क़े मे    भी अजब ज़माल    लगती      थी  वो ।
मैं मक्का की सड़कों पर जब भी टहलने को निकलता
मुझे        हंसकर      पास     बुलाती   थी   वो ।
मैं गुलशन में बैठने    हरशाम  जाया करता था,
सदियां गुज़रेगी मैं न भूलूंगा उसे वो न भूलेगी मुझे
ऐसा     मुझसे    कहा       करती     थी    वो।
मै दोपहर को जब उसके घर के रास्ते होकर गुजरता 
अपने   घर   की     खिड़कियों   के   परदे  से 
चुपके    से      मुझ देखा      करती   थी   वो। 
जब सारा आसमान  सितारों  से सजा    होता
 और           चाँद      भी       पूरा          होता 
ऐसी चांदनी रात में मुझसे  मिला करती थी वो।।
लेखक = शेखर सुमन मेघवाल (पुष्कर)
Write by shekhar suman meghwal

©Shekhar suman Meghwal shsbbssh