इनकार है मुझे समाज की खोखली नीतियों से, हर शक्स को निचोड़ती अवांछित कुरीतियों से, ये रूह अक्सर कांप जाती है हुई आपबितियों से, लहू उबलता है देख नाउम्मीदी में फसीं मुक्तियों से, हा इनकार है मुझे समाज से उठती उंगलियों पे। चाहत के सब रिश्ते बैमाने निकलते है, नफ़रत का मोम भी पैसे से पिघलते है, माया की दिखावा में अपनों को निगलते है, बेबात की कसौटी पे सगे रिश्ते बिगड़ते है, हा इनकार है मुझे जहां से, जहां पैसे पे रिश्ते बनते है। चंद पैसों में अपनों का किरदार मिल रहा था, कहीं ममता तो कहीं भाई का सौदा मिल रहा था, बहन की जिद और पितृ स्नेह कोने में दिख रहा था, लगा के अनमोल दाम यहां भगवान बिक रहा था, मुझे इनकार है इन तमाशों पे जो सरेआम दिख रहा था। यहां समय ही वक्त की बोली लगाता है, बचपन अक्सर जवानी से हार जाता है, बचपन की जिद अब समझौता बन जाता है, तब तो नहीं पर अब दुख छुपाने आता है, हा इनकार है मुझे दिल से, जो बड़ा बन के मुरझाता है। असहमति का होना भी बहुत ज़रूरी है। बताइये किस बात से इनकार है आपको और क्यों। Collab करें YQ Didi के साथ। #इनकारहैमुझे #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine