देख सनम मिरे तू इन बेहिसाब हसरतों को कोई नहीं यहाँ समझे बेहिसाब हसरतों को एक आग है मुझमें जो, शोलों सी है दहक रही आ ज़रा पूरी कर इन बेताब हसरतों को शाइस्तगी मेरी समझने में ज़माना लगेगा तुझे आकर एक बार चख, इन लाजवाब हसरतों को अहद-ए-आगाज़-ए-तमन्ना है अभी तो मेरी ए संगदिल सनम यूँ न पहना हिजाब हसरतों को अभी तो शुरू हुआ है 'सफ़र' ज़ीस्त का मेरा अभी तो गुले गुलज़ार होना है शबाब हसरतों को अहद-ए-आगाज़-ए-तमन्ना- era of bigening of desires 👉🏻 प्रतियोगिता- 284 🙂आज की ग़ज़ल प्रतियोगिता के लिए हमारा शब्द है 👉🏻🌹"बेहिसाब हसरतें "🌹 🌟 विषय के शब्द रचना में होना अनिवार्य है I कृप्या