रिश्तों की एक नदी है। जो बहती है सनेह लिए। विषमताओं की चट्टानों से, टकराकर भी रुकती नही। किनारों पर अपने फैलाके रेत! आगे बढ़ जाती है। हम बनाते रेत के घरौंदे! किनारे बैठ प्यार में ढेर सारे। फिर तोड़ देते अपने ही हाथों, जो देखे थे कभी ख़्वाब सारे। ढूंढने लगते समतल ज़मीन! उपजाऊ और हरियल नज़ारे। #cinemagraph साथियो आजकल थोड़ा व्यस्त हूँ इसलिए आपकी पोस्ट नही देख पा रहा जल्द ही व्यस्तता खत्म करके सभी पोस्ट पढूँगा। #पाठकपुराण के साथ बने रहिए दिल से आपका प्रेम महसूस करता हूँ। #शुभरात्रि । : विश्व का भविष्य युवा वर्ग के हाथ में है। वह अभी वैश्वीकरण की चकाचौंध में है। उसकी जीवन शैली एक प्रवाह में बह रही है। वह विदेशी जीवन के अनुभवों, प्रयोगों एवं आधुनिकीकरण के बीच जीना चाहता है। उसे कभी-कभी भारतीय परम्पराएं भी याद आती हैं, किन्तु कब तक?