चाहत में आज़ादी मिले न मिले, ऐ काश कि बर्बादी न मिले। हमसफ़र खूबसूरत मिले न मिले, ऐ काश कि शहज़ादी न मिले। मुतमईन चाहत की ख़्वाहिश लिए, फिरता रहता हूँ मैं आजकल। हमसफ़र राज़ी मिले न मिले, ऐ काश कि नाराज़ी न मिले। इश्क़ मेरा भी परवान चढ़ जाता, गर कोशिश-ए-खास होती। मुकम्मल चाहत भी मिल जाती, ऐ काश कि वो राज़ी तो मिले। दोनों ने इक़रार जो किया होता, तो आज हम एक होते। निकाह का कलमा भी पढ़ लेते, ऐ काश कोई काज़ी तो मिले। मैं अपनी वफाओं की हदें, अब खूब पहचानता हूँ साहिल। मुझमें वफ़ा मिले न मिले, ऐ काश कि कोई साज़िश न मिले। ♥️ Challenge-626 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।