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जिंदगी के उस मोड़ पर हूं जहां..... बिकती है ना ख

जिंदगी के उस मोड़ पर हूं जहां.....

बिकती है  ना खुशी कहीं,
ना कहीं गम बिकता है।

लोग गलतफहमी में है।
कि शायद कहीं मरहम बिकता है।

इंसान ख्वाहिशो से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है।
उम्मीदों से घायल है और उम्मीदों पर जिंदा है ।

©muskan singh chauhan zindagi ke us mod par hu
जिंदगी के उस मोड़ पर हूं जहां.....

बिकती है  ना खुशी कहीं,
ना कहीं गम बिकता है।

लोग गलतफहमी में है।
कि शायद कहीं मरहम बिकता है।

इंसान ख्वाहिशो से बंधा हुआ एक जिद्दी परिंदा है।
उम्मीदों से घायल है और उम्मीदों पर जिंदा है ।

©muskan singh chauhan zindagi ke us mod par hu