#OpenPoetry गुनहगार हूँ तुम्हारा मानता हूँ, हाँ हुई है ख़ता जानता हूँ । पर तुमसे बेवफ़ाई तो ना थी, कुछ पल का गुस्सा था शायद पर रुस्वाई तो न थी, मैं बस आने ही वाला था, घुटनों पर बैठ बाहें फैलाने ही वाला था, पर आंखें खुली तो देखा तुम मेहबूब किसी और कि थी, तुम मेरी हो और मैं बस तुम्हारा ये बातें बीते दौर की थी, मेरी आंखों में बस तुम थी पर तुम्हारी नज़रें किसी और पे थी, गुनहगार हूँ तुम्हारा मानता हूँ, हाँ हुई है ख़ता जानता हूँ ।। लेकिन कुछ पल इंतज़ार कर लेती, थोड़ी देर और सही, प्यार कर लेती । मुझे पकड़ती और पूछती वज़ह क्या थी पर थोड़ा इंतज़ार तू मेरे यार कर लेती, ख़ैर अब ख़ुश तो हो ना उसके साथ, बात बात पे टोकने वाला कोई नहीं है, रात काफ़ी हो चुकी है, ये कपड़े पहन के मत चलना बोल के रोकने वाला कोई नहीं है, याद तो आती होगी, सोचती तो होगी शायद तुम्हारी खुशियों के लिए अपनी खुशियां झोकने वाला कोई नहीं है, गुनहगार हूँ तुम्हारा मानता हूँ, हाँ हुई है ख़ता जानता हूँ ।। जाने क्या क्या ख़्वाब देखें थे तुम्हारे साथ मैंने, पर मेरे ख्वाबों में सनम जुदाई तो ना थी, गुनहगार हूँ तुम्हारा मानता हूँ, हाँ हुई है ख़ता जानता हूँ ।। #Pjpoetry 🖋️ #Love ❤️ #Feelings #Emotions #Wordsporn #Unspokenpoem #WritingChallenge #Nojotofamily