कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊं तुम बिन। तुम थे तो बिन दीप उजियारा था तुमने ही तो घर सवांरा था घर की रौनक के वो आधार स्तम्भ तुम्हीं थे इस अंकुरित बीज का वो प्रारंभ तुम्हीं थे अब वो भौर नही तुम बिन अब वो शोर नहीं तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दीवाली मनाऊँ तुम बिन।। आज पास धन है पर मैं धनवान नहीं हूं आज पास सब है पर मैं बलवान नहीं हूँ छाँव देता वो वृक्ष कहाँ से लाऊँ खुशी देता वो पाँव कहाँ से लाऊँ अब कितने भी दीप जला लूँ ये अंधियारा ना मिटता तुम बिन कैसे दीप जलाऊँ तुम बिन। कैसे दिवाली मनाऊँ तुम बिन।। रचनाकार-बलवन्त सिंह रौतेला स० अ० (एल० टी०)