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यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा लेकिन अब के

यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा 

लेकिन अब के नज़र आते हैं कुछ आसार जुदा 

गर ग़म-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ है तो ठहर जा ऐ जाँ 

कि इसी मोड़ पे यारों से हुए यार जुदा 

दो घड़ी उस से रहो दूर तो यूँ लगता है 

जिस तरह साया-ए-दीवार से दीवार जुदा 

ये जुदाई की घड़ी है कि झड़ी सावन की 

मैं जुदा गिर्या-कुनाँ अब्र जुदा यार जुदा 

कज-कुलाहों से कहे कौन कि ऐ बे-ख़बरों 

तौक़-ए-गर्दन से नहीं तुर्रा-ए-दस्तार जुदा 

कू-ए-जानाँ में भी ख़ासा था तरह-दार 'फ़राज़' 

लेकिन उस शख़्स की सज-धज थी सर-ए-दार जुदा

©सत्यमेव जयते
  यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा

यूँ तो पहले भी हुए उस से कई बार जुदा #Shayari

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