मेरे अलावा मेरे घर में सब लोग रहते हैं मेरा दिखावा मेरे घर में होना न समझते हैं भागती दौड़ती जिंदगी मुझे किस कदर बेबस रखती है रुककर ठहरु कैसे मुझ में अपनों की ख्वाहिश पलती है ठोकर लगते हैं पैरों में मेरे भी बहुत एहसास ना होती है अपने उभरते हैं मेरे मेहनत से तब तो बुलंदी मिलती है ख्वाहिश मेरी छोटी सी है अपनों की रहनुमाई करती हूं हरगिज मुझसे रूठ ना जाए जरूरत घर की ये सोचती हूं ©Farah Naz #Sea#ristonkasamandar