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रात जो बीतती है हर रोज़ तन्हा सुकून मिलता है अब कह

रात जो बीतती है हर रोज़ तन्हा
सुकून मिलता है अब कहाँ 
जज़्बात जागकर खुद-ब-खुद हो जाते हैं ख़त्म 
दिल अपना मार के जीते हैं हम यहाँ 
नहीं समझ आता कि ये  आखिर क्या हो रहा है हमको 
ख़ामोश हैं दिल, आँखें और जुबां

©Poonam Suyal
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