आज़ फिर एक दिवाली आई थी, आई वो अमावस्या में इस बार भी, संदेश लेकर आई थी प्यार का, साथ लेकर आई थी वो उम्मीदें , आई थी वो ढ़ेर सारी खुशियां भी लेकर, बहुत सारे अफसाने भी सुना के गई, रंगों से सजे बहुत सुंदर खाब भी लाईं, बहुत सुंदर दियों से सजे रिश्ते भी लाईं, पर उसे ना मिला प्यार, उम्मीद भी ना मिली, अफसाने सिर्फ गमों के सुने इस बार भी, खाब तों जेसे टुटे फुटे मिल गये, दिये सुंदर कहा अब सजे मिलते, भागमभाग भरी जिंदगी में कुछ नहीं देखा, दिवाली ने उसकी भी अलग पहचान देखली.... दिवाली ने उसकी भी अलग पहचान देखली ।