दर्द-ए-दिल है तो सहो, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है? उसकी फितरत में है बेवफ़ाई करना, फिर हमें उससे उम्मीद-ए-वफ़ा क्या है। सारा ज़माना है ख़िलाफ़त में मेरी, बेरुख सिर्फ एक हवा क्या है। जान है तो मौत का डर भी ज़रूरी है, बिना अंधेरे के सहर का मज़ा क्या है। दर्द-ए-दिल है तो सहो, आख़िर इस दर्द की दवा क्या है? ~हिलाल #Dard #Dawa #Wafa