दीवारों में भी अक़्स ढूढ़ता रहता हूँ उसका, दिलो-दिम


दीवारों में भी अक़्स ढूढ़ता रहता हूँ उसका,
दिलो-दिमाग़ से उसका ख़्याल नही जाता अब।

उदासी की शाम आती है और ख़त्म नही होती,
लगता नही की खुशियों की सहर भी होगी अब

आज भी बरसती बूंदों में ढूढ़ता हूँ उसे,
नाव बनाने वाला अख़बार भी नही आता अब।

मेरी तबियत पूछना, इख्लास सब फिज़ूल की बातें है,
आपका घर आ गया है हाथ मेरा छोड़े अब।

 (इख्लास= प्रेम, सच्चाई, शुद्धता, निष्ठता)
The Writer's Magnet आप सभी का इस प्रतियोगिता में स्वागत करता है। आपकी रचना 4 से 10 पंक्तियों तक ही होनी चाहिए।

#writersmagnet #wmchallenge #yqhindi #yqdidi #wmudasi

✍️ आपकी रचना व्यक्तिगत एवं मौलिक होनी चाहिए।
✍️ समय सीमा - रात्रि 09:00 तक
✍️ कृपया हमारे hashtags बरकरार रखें।

दीवारों में भी अक़्स ढूढ़ता रहता हूँ उसका,
दिलो-दिमाग़ से उसका ख़्याल नही जाता अब।

उदासी की शाम आती है और ख़त्म नही होती,
लगता नही की खुशियों की सहर भी होगी अब

आज भी बरसती बूंदों में ढूढ़ता हूँ उसे,
नाव बनाने वाला अख़बार भी नही आता अब।

मेरी तबियत पूछना, इख्लास सब फिज़ूल की बातें है,
आपका घर आ गया है हाथ मेरा छोड़े अब।

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