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वो होठो पर मेरे गजल बनके आ गये ।।  मै तो खण्हर हो


वो होठो पर मेरे गजल बनके आ गये ।। 
मै तो खण्हर हो गया था जमाने के लिये , 
वो वाहो मै मेरी ताजमहल बनके आ गये ।। 

कट रहा था सफर मेरा धूप मै चलते चलते, 
वो रहो मै मेरी भीगे बादल बनके आ गये ।। 

भूल चुका था मै शायद इश्क के अहसासो को, 
वो दहलीज पर मेरी बीता कल बनके आ गये ।। 

टूटे छत से बरस रही थी वूँदे तन्हायी की , 
वो सर्द रातो मै मेरी महल बनके आ गये ।। 

मै भटक रहा था प्यासा रेगिस्तान मै अकेला, 
वो हाथो मै मेरे मीठा जल बनके आ गये ।। 

कई सबाल उठ खडे थे उनके जाने के बाद, 
वो उन सारे सबालो का हल बनके आ गये ।। 

एक तस्बीर मैने बनायी थी अपने हमसफर की, 
वो हूँवहू उस तस्बीर की नकल बनके आ गये ।।

©Bhanu Pratap Singh
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