शून्य! संसार आंखों में सपने शून्य में मन में सूनापन! आने ही क्यों देता है मन अपनी सी शून्य-परिधि में किसी और को लिए यों अपनापन? अपनों के अपनेपन से भरा नहीं था मन? मीत मन का मान बैठा किसे बोल रे अनुमन! निर्मम इस शून्य में क्या निहारता है अबोध बचपन? कटी पतंगें शून्य में क्षत-विक्षत बालपन! और साँझ ले गई सूर्य का वो लाल रंग। ढलती साँझ देखता है शून्य में उदास यौवन! और रात देखती है चाँद! शून्य मेरा मन! श्याम-शून्य में विचरता शून्य-श्वेत-जीवन! #onlytomyself#endearedhopes#yqlife#piercingsilence#cravingmoon#yqfragmentsofself