ये जगमगाहट ज़माने को दिखाने के लिए एक झूटी कहानी है घर लौट आओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी है घर की चौखट पर इसलिए हुँ कि तुम अँधेरा देख बाहर से ही न लौट जाओ आने से पहले ही फिर अगले साल आने का वादा न कर पाओ आज फिर तुम्हारे इंतज़ार में सारा दिन रसोई में लगकर वो सा पकवान बनाएं जो तुम्हारे बचपन की निशानी है घर लौट आओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी है आ जाओ की तुम्हारी ऊँगली पकड़ कर चलना सीखाने वाली हड्डियां अब बूढ़ा चुकीं है जिन आँखों ने ये दुनिया तुम्हें दिखाई वो नज़रें अब धुंधला चुकीं हैं मेरे नातिन पोतों से ये बात कहने में देर न हो जाये चलो इस बार चलें जहाँ रहती तुम्हारी दादी या नानी हैं घर लौट आओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी है छोटा सा ही ख़्वाब था कि बहुत काबिल बनो पर तुम तो मेरे हाथों कि पहुंच से निकल कर काफी बड़े हो गएँ तुम्हारा ओहदा, तुम्हारी पहचान, तुम्हारी मसरूफ़ियत जैसे मेरे और तुम्हारे बीच दीवार बनकर खड़े हो गए खुद अपनों से ही इतना दूर हो जाओ आखिर क्यों इतना ऊँचा उड़ने कि ठानी हैं घर लौट आओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी है गाजर के हलवे में भी अब तुम बिन कहाँ वो स्वाद रहा हैं जो पतझड़ में भी खिला रहता था वो शज़र अब हर सावन में बर्बाद रहा हैं कुछ पल तो ठहरो मेरे पास यु ही समझ लो तुम्हारे वक़्त पे हक़ जाताना मेरी ढलती उम्र कि नादानी हैं घर लौट आओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी है पडोसी कहते हैं अक्सर बंटी की मम्मी, बंटी इस साल भी नहीं आया खैर हमारी कुछ ज़रूरत हो तो बताना जी करता हैं उनसे की कहके देख लूँ बंटी की चाहत हैं, ज़रा उसे ही लाकर दिखाना सुनो, अमृत तो नहीं पिया, अमर तो नहीं हूँ मैं कहाँ तुम्हें हमेशा के लिए पकड़ कर बैठने वाली मेरी ज़िंदगानी हैं शम्स-ऐ-ज़िन्दगी ढल जाये, उससे पहले ही आ जाओ कि ये दिवाली तुम बिन बिल्कुल वीरानी हैं #Diwali #memories #lasthope