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"जनप्रतिनिधि" राजनीति में आते हैं वे


            "जनप्रतिनिधि"
राजनीति में आते हैं वे दीपक की तरह।
देश का धन खाते हैं वे दीमक की तरह।
शुरु में लगते हैं वे शुभचिंतक की तरह।
धीरे-धीरे बनते हैं वे कंटक की तरह।
राजनीति में नीति है गायब अब है केवल राज।
करते हैं सब मनमर्जियाँ तनिक न आती लाज।
जनप्रतिनिधि नाम है केवल जनता से न नाता।
पाँच वर्ष का राज है अपना कौन पूछने आता।
वोट माँगने आते हैं वे याचक की तरह।
बाद में फिर बात हैं करते विभाजक की तरह।
रोज नए नेता बनने का चला है नया दौर।
राजनीति तो नाम का बस काम इनका कुछ और।
अपराध छिपाने का राजनीति बना ठिकाना।
खुद को कोई खतरा नहीं, सुरक्षा में है आना-जाना।
खुद को तो दिखाते हैं वे रक्षक की तरह।
सब कुछ हजम कर जाते हैं वे भक्षक की तरह।
नेताजी जी की महिमा प्यारी,न्याय में होता खेल।
नेता को जल्द बेल मिले, जनता भोगे जेल।
जनता के पैसे से ही खूब लगाते ठाट।
समस्या लेकर जनता जाये, मिलती कवल डाँट।
बातों से रहते हैं वे समर्थक की तरह।
काम के वक्त देखते हैं वे मूकदर्शक की तरह। आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ ऐसा ही है

            "जनप्रतिनिधि"
राजनीति में आते हैं वे दीपक की तरह।
देश का धन खाते हैं वे दीमक की तरह।
शुरु में लगते हैं वे शुभचिंतक की तरह।
धीरे-धीरे बनते हैं वे कंटक की तरह।
राजनीति में नीति है गायब अब है केवल राज।
करते हैं सब मनमर्जियाँ तनिक न आती लाज।
जनप्रतिनिधि नाम है केवल जनता से न नाता।
पाँच वर्ष का राज है अपना कौन पूछने आता।
वोट माँगने आते हैं वे याचक की तरह।
बाद में फिर बात हैं करते विभाजक की तरह।
रोज नए नेता बनने का चला है नया दौर।
राजनीति तो नाम का बस काम इनका कुछ और।
अपराध छिपाने का राजनीति बना ठिकाना।
खुद को कोई खतरा नहीं, सुरक्षा में है आना-जाना।
खुद को तो दिखाते हैं वे रक्षक की तरह।
सब कुछ हजम कर जाते हैं वे भक्षक की तरह।
नेताजी जी की महिमा प्यारी,न्याय में होता खेल।
नेता को जल्द बेल मिले, जनता भोगे जेल।
जनता के पैसे से ही खूब लगाते ठाट।
समस्या लेकर जनता जाये, मिलती कवल डाँट।
बातों से रहते हैं वे समर्थक की तरह।
काम के वक्त देखते हैं वे मूकदर्शक की तरह। आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ ऐसा ही है

आज के परिप्रेक्ष्य में कुछ ऐसा ही है