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*अगर यही के हो,* *तो इतना "डर" कैसे,* *मगर चोरी से

*अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे,*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??*

अगर तुम "अमनपसंद" हो, 
तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो, 
वो तुम्हारा "शहर" कैसे??

कल तक सिर्फ कोहरा था, 
मेरे शहर की फिजा मे,
आज नफरत का धुआं है, 
तो सुहानी "सहर" कैसे?

इजहार ए नाराजी करो,
आईन(constitution)की जद मे,
मगर गली कूंचों में,
इतनी "मजहबी लहर" कैसे?

सिर्फ लहजा सख्त होता,
तो हम चुप भी रह लेते,
मगर तुम्हारे लफ्जो और नारो मे
"जिहादी जहर" कैसे?

सियासत से खिलाफत करो, 
हमे कोई गिला नही है,
रियासत से दगा होगी,
तो हम करें "सबर" कैसे?

*अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे?*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??* *अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे,*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??*

अगर तुम "अमनपसंद" हो, 
तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,
*अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे,*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??*

अगर तुम "अमनपसंद" हो, 
तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो, 
वो तुम्हारा "शहर" कैसे??

कल तक सिर्फ कोहरा था, 
मेरे शहर की फिजा मे,
आज नफरत का धुआं है, 
तो सुहानी "सहर" कैसे?

इजहार ए नाराजी करो,
आईन(constitution)की जद मे,
मगर गली कूंचों में,
इतनी "मजहबी लहर" कैसे?

सिर्फ लहजा सख्त होता,
तो हम चुप भी रह लेते,
मगर तुम्हारे लफ्जो और नारो मे
"जिहादी जहर" कैसे?

सियासत से खिलाफत करो, 
हमे कोई गिला नही है,
रियासत से दगा होगी,
तो हम करें "सबर" कैसे?

*अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे?*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??* *अगर यही के हो,*
*तो इतना "डर" कैसे,*
*मगर चोरी से घुसे हो,*
*तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??*

अगर तुम "अमनपसंद" हो, 
तो इतनी "गदर" कैसे?
जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,

*अगर यही के हो,* *तो इतना "डर" कैसे,* *मगर चोरी से घुसे हो,* *तो ये तुम्हारा "घर" कैसे??* अगर तुम "अमनपसंद" हो, तो इतनी "गदर" कैसे? जिसे खुद "खाक" कर रहे हो,