मैं बोली मनमोहन से, क्या लिखा भाग्य के छोर? वे मंद मंद मुस्काते बोले, बस न छोड़ प्रेम की डोर।। मैं पीर सहूँ, मैं धीर धरूँ, मैं जाऊँ जब तब बलिहारी। कान्हा कहते मैं जानूँ सब, सब देखे ये मोरमुकुटधारी।। राधे राधे 🙏 - निधि चौधरी प्रेम अप्रतिम ❤