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अधूरा प्रेम ही पूरा होता है क्योंकि उसके आरंभ स

अधूरा प्रेम ही  पूरा होता है 
क्योंकि उसके  आरंभ से लेकर 
अंत का अधूरापन  अधूरा ही रहता है

इस अधूरे पन्न में आप जिससे  प्रेम करते हो 
वो ही 
सर्व व्याप्त होता है जिसे आप से 
कोई छीन नहीं सकता

इस तरह से अधूरापन 
खुद को  पूरा कर लेता है

और
इसके विपरीत जब प्रेम संपूर्णता को 
प्राप्त कर लेता है 
तो वह फिर 
समाप्ति की ओर  
अग्रसर हो जाता है। 

वह छोटी-छोटी बातें  
जो पहले नजरअंदाज  कर दी जाती थी 
फिर वही बातें  बड़ी लगने लग जाती है 

जिस मन को  प्रेम की 
अधिकता मिली हो
उसे प्रेम की क्षीणता  उसकी हीनता
कैसे बर्दाश्त हो सकती है

अगर आप अधूरे हैं  तो यकीन मानिए 
पूरे तरह से  पूरे हैं ।

©Ankur Mishra अधूरा प्रेम....... ही पूरा होता है...
#अधूरा_प्रेम
अधूरा प्रेम ही  पूरा होता है 
क्योंकि उसके  आरंभ से लेकर 
अंत का अधूरापन  अधूरा ही रहता है

इस अधूरे पन्न में आप जिससे  प्रेम करते हो 
वो ही 
सर्व व्याप्त होता है जिसे आप से 
कोई छीन नहीं सकता

इस तरह से अधूरापन 
खुद को  पूरा कर लेता है

और
इसके विपरीत जब प्रेम संपूर्णता को 
प्राप्त कर लेता है 
तो वह फिर 
समाप्ति की ओर  
अग्रसर हो जाता है। 

वह छोटी-छोटी बातें  
जो पहले नजरअंदाज  कर दी जाती थी 
फिर वही बातें  बड़ी लगने लग जाती है 

जिस मन को  प्रेम की 
अधिकता मिली हो
उसे प्रेम की क्षीणता  उसकी हीनता
कैसे बर्दाश्त हो सकती है

अगर आप अधूरे हैं  तो यकीन मानिए 
पूरे तरह से  पूरे हैं ।

©Ankur Mishra अधूरा प्रेम....... ही पूरा होता है...
#अधूरा_प्रेम