मैं कोशिश करती हूं लिखने की, हॉ बस एक नाकाम कोशिश करती हूं। अपूर्णता का पर्याय लगती हैं मुझे मेरी पंक्तियॉ ।जब मैं प्रेम को प्रेम लिखती हूं हॉ जब मैं प्रेम को प्रेम लिख देती हूं पर डालते ही प्रेम के संग आपके के कुछ एहसास , नाम या विशेषण चमक उठती हैं मेरी कवितायें साहित्य के नगरी में और पाकर एहसासों का सहारा मैं तैरने लगती हूं इन कविताओं के भंवर में अप्रतिम तो नही होती ये आपकी तरह फिर भी कुछ अंश दिख जाता है मुझे आपका जिसे लगा लेती हूं मैं अपने छाती से और फिर डूब जाती हूं आप में कहीं आपके स्पर्श से होती हुयी मेरी कवितायें