जिनके हाथों सींच के भारत सोना उगला करती है, उनके साथ खड़े ना रह कर गद्दारी क्यूँ करते हम? जो चीड़ के सीना धरती का सुरज को आँख दिखाते हैं, बादल से जा कर भीड़ते हैं पत्थर से पानी लाते हैं। साथ नहीं गर उनके तो फिर साथ भला तुम किनके हो? रक्त बहा करके वो अपना पेट देश का भरते है, उस रक्त के एवज मे उनको हम देशद्रोही क्यूँ कहते हैं ? पैसों से थाली खींचने वालों रक्त की कीमत क्या दोगे, अन्नदाता ही नहीं रहेंगे संतानों को क्या दोगे ? क्या दोगे जवाब माटी को जिसने इनको सींचा है, लहु बहे जब तन से इनके माटी ने आँसू पोछा है। मैं साथ खड़ा हूँ इनके अब तुम अपनी राहें देख लो यारों, दर्पण के ज़रा सामने आओ अपनी आँखे भींच लो यारों। देशभक्ति की क्या परिभाषा अंतर्मन मे सीख लो तुम, कदमों को नई राह दिखाओ गीत नया फिर गढ़ लो तुम। प्रश्न ना पूछे माटी तुमसे खामोशी से बैठे क्यूँ ज़ुल्म हुआ जब संतानों पर अपनी आँखे भींचे क्यूँ? तो कदम बढ़ाओ कर्ज चुकाने माटी का और उनके पूत सपूतों का, जिसने भारत को सींचा है उनके हक संरक्षण का। खामोशी ना काम आयेगी राह कोई अब चुननी है, कृषिप्रधान ये देश हमारा बात ध्यान मे रखनी है... हाँ कृषि प्रधान ये देश हमारा बात ध्यान मे रखनी है..।। ©रतनेश पाठक_ Protest Writer #farmersprotest #farmer #bharatband #Nojoto #poem