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मौन आधी रात में छत पे खड़ा था, मैं कसी की राह को भी

मौन आधी रात में छत पे खड़ा था,
मैं कसी की राह को भी तक रहा था 
फिर भटकता रात का काला अंधेरा, 
रात को दीपक जलाकर सो रहा था 
एक उदासी छा गयी उसके बगल में,
नींद भी यूँ आ गयी उसके बगल मे 
हम अकेले थे अकेले चल पड़ेंगे,
है हमारा घर वहीँ उसके बगल में 
याद अब ना याद हमको राह उसकी,
रात भर क्यों आ रही बेचैन सिसकी!!

©manav bhatt
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