Bad Times कुछ ठीक सा नहीं है बस लग रहा है ठीक है यूँ रात गय मेरा दबे पांव कमरे की दहलीज तक जाना यूँ चुप्पी से खड़े रहकर वापस लौट आना कुछ ठीक सा नही है खिड़की को ऐसे ताड़ना जैसे मोहित हो किसी के प्रेम में ठंडी ज़मीन को ऐसे ताकना जैसे बर्फीली पहाड़िया हो मन में कुछ ठीक सा नहीं है बिस्तर पर करवटे बदलना मेरे चादर पर सिलवटें पड़ना नम आंखों से तकिया भिगोना सुबह तक उसका सूख जाना कुछ ठीक सा नही है यूँ शांत मन से ऊपर नीचे देखना घड़ी की आवाज़ ध्यान से सुनना फिर उस अंधेरे में परछाई खोजना न मिलने पर खुद को ही कोसना कुछ ठीक सा नही है सब को ठीक हूँ कह देना रोने को हँसने में बदल लेना ज़िन्दगी को नए मोड़ पर खड़ा करना और फिर सब भूल कर शुरुआत करना कुछ ठीक से नही है। शिखा विश्वकर्मा #kuchthiksanahihai