White उस पुण्य भूमि पर आज तपी! रे, आन पड़ा संकट कराल, व्याकुल तेरे सुत तड़प रहे डँस रहे चतुर्दिक विविध व्याल। मेरे नगपति! मेरे विशाल! कितनी मणियाँ लुट गयीं? मिटा कितना मेरा वैभव अशेष! तू ध्यान-मग्न ही रहा; इधर वीरान हुआ प्यारा स्वदेश। किन द्रौपदियों के बाल खुले? किन-किन कलियों का अंत हुआ? कह हृदय खोल चित्तौर! यहाँ कितने दिन ज्वाल-वसंत हुआ? ©RJ VAIRAGYA #ramdharisinghdinkar #rjharshsharma