हर किसी की यहांँ इक अलग दास्तांँ है। आज भटके यहांँ और कल फिर वहांँ है। ना सताएंँ कभी चेत जाएंँ अभी तो, इस धरा पर ही फिर स्वर्ग का द्वार मांँ है। जयद्रथ भैया