मैं दुनिया को देखना चाहती हूं, मैं आसमान छूना चाहती हूं, मैं पतंगों सी ऊंची उछाल मारना चाहती हूं। फिर तुम मुझे अहंकारी कहो या स्वाभिमानी? मुझे स्वीकार है तुम्हारी दोनो वाणी। सब कुछ तो है तुम्हारे पास, किस्मत, तक़दीर, शोहरत, आजादी फिर यह आंख मिचौली वाले खेल किसलिए? खेलना चाहती हो तुम। जरूरत नही इन सबकी मैं हूं ना। मिट्टी में रौंदे जाने से पहले, एक पहचान बनाना चाहती हूं। छोटी ही सही अपनी कश्ती का वजूद, तलाशना है मुझे, अपने ख्वाबों को एक दिशा देनी है मुझे। अगर तुम्हे लगता है, यह खेल है। तो मैं यह खेल खेलना चाहती हूं। ©Ruksar Bano #selfdependent #doyourbest