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कल भोर की, ​उदित होती सिंदूरी किरण के संग, ​मैने न

कल भोर की,
​उदित होती सिंदूरी किरण के संग,
​मैने नेह की सुनहरी पोटली मे,
​सूरज से आती,
​ममता की ​धूप को,
​अपनी झीनी सी,
हथेलियों से भर लिया,
​और..
​गले का हार बना ​लटका लिया,
​ममत्व की डोरी मे पिरो, कल भोर की,
​उदित होती सिंदूरी किरण के संग,
​मैने नेह की सुनहरी पोटली मे,
​सूरज से आती,
​ममता की ​धूप को,
​अपनी झीनी सी हथेलियों से भर लिया,
​और..
​गले का हार बना ​लटका लिया,
कल भोर की,
​उदित होती सिंदूरी किरण के संग,
​मैने नेह की सुनहरी पोटली मे,
​सूरज से आती,
​ममता की ​धूप को,
​अपनी झीनी सी,
हथेलियों से भर लिया,
​और..
​गले का हार बना ​लटका लिया,
​ममत्व की डोरी मे पिरो, कल भोर की,
​उदित होती सिंदूरी किरण के संग,
​मैने नेह की सुनहरी पोटली मे,
​सूरज से आती,
​ममता की ​धूप को,
​अपनी झीनी सी हथेलियों से भर लिया,
​और..
​गले का हार बना ​लटका लिया,
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