उम्मीदें इस दिल में ना जाने क्या क्या पलती हैं तुमसे बिछड़ा हूँ मैं और साँसें फिर भी चलती हैं जाने ऐसी बात है क्या महफिल में तन्हा रोता हूँ कभी जो अपना हो ना सका उसे नज़रें ढूंढा करती हैं हाँ वक़्त के मरहम से शायद ये जख्म कभी भर जायेगा पर टूटे दिल के टुकड़ों से दुआएं फिर भी निकलती हैं वक़्त का मरहम