रुक जाना नहीं इस जीवन के सफ़र में चलते है रहना नदियों की भांति धाराओं के जैसे मिलना है तुम्हे भी समंदर के ढर में पहाड़ों को तोड़कर जंगलों को चीरकर चलते है रहना बादलों सफ़र सा उम्मीदों की भांति बंजर धरा को बूंदों से सींचकर ऊर्जा तुम्हीं हो स्वेदक पथिक तुम कर्मों रथी तुम युवा हो , प्रजा हो युगों की ध्वजा हो शौर्य के रग में प्रतिनंदन तुम्हीं हो खो जाना नही भौतिक सुखन में समय जो सीमित है मंजिल तुम्हारी साधक तुम्ही में तुम्ही हो जो कातिब किताबों तुम्हीं हो । ©Ritesh Tiwari रूक जाना नहीं #riteshtiwari #Bicycle