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"आम का पेड़" (कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) बचपन में जब

"आम का पेड़"
(कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) बचपन में जब भी गर्मी की छुट्टियाँ होती थी तो हम अक्सर करके दादी के घर जाया करते थे।

जैसे ही स्कूल खत्म होता मैं और मेरा छोटा भाई जाने की तैयारी करने लगते, "मम्मी हमारे सारे कपड़े और खिलौने रख दिये है न" मेरा भाई तो मुझसे भी ज्यादा उत्साहित रहता था।

मुझे आज भी याद है दादी के घर के सामने एक बगीचा हुआ करता था जिसमे कई खूबसूरत फूलों के पौधे थे और कई फलों के पेड़ थे उसमे से ही एक बहुत पुराना पेड़ था आम का पेड़। 

दिन भर जब हम सारे भाई बहन खेल के थक जाते थे तो शाम को उसी बगीचे मे जाते थे। वहाँ बगीचे में टहलते तो कभी कभी फूलों की माला बनाते और फल खाया करते थे। मेरा सबसे मनपसंद फल तो आम ही था, तो मैं अक्सर पेड़ पे चढ़ं जाती और एक मोटी टहनी पे बैठ जाती। वहां से कई सारे आम तोड़ कर घर ले आती। फिर मम्मी उसे काट कर हमे नमक मिर्च लगकर खाने को देती थी, क्या स्वाद आता था मुझे आज भी याद है। 
"आम का पेड़"
(कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) बचपन में जब भी गर्मी की छुट्टियाँ होती थी तो हम अक्सर करके दादी के घर जाया करते थे।

जैसे ही स्कूल खत्म होता मैं और मेरा छोटा भाई जाने की तैयारी करने लगते, "मम्मी हमारे सारे कपड़े और खिलौने रख दिये है न" मेरा भाई तो मुझसे भी ज्यादा उत्साहित रहता था।

मुझे आज भी याद है दादी के घर के सामने एक बगीचा हुआ करता था जिसमे कई खूबसूरत फूलों के पौधे थे और कई फलों के पेड़ थे उसमे से ही एक बहुत पुराना पेड़ था आम का पेड़। 

दिन भर जब हम सारे भाई बहन खेल के थक जाते थे तो शाम को उसी बगीचे मे जाते थे। वहाँ बगीचे में टहलते तो कभी कभी फूलों की माला बनाते और फल खाया करते थे। मेरा सबसे मनपसंद फल तो आम ही था, तो मैं अक्सर पेड़ पे चढ़ं जाती और एक मोटी टहनी पे बैठ जाती। वहां से कई सारे आम तोड़ कर घर ले आती। फिर मम्मी उसे काट कर हमे नमक मिर्च लगकर खाने को देती थी, क्या स्वाद आता था मुझे आज भी याद है।