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भूत का इंटरव्यू (हास्य-कथा)-भाग-2 ****************

भूत का इंटरव्यू (हास्य-कथा)-भाग-2
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हाँ तो पंचर वाले ने मेरी बफदारी को परख,लगभग 5 सालों तक साथ दिया फिर पंचर बनाते हुए एक दिन जेठ की दोपहरी में निकल लिए | माथे पर अपनी बूढी बीबी ( जिसे अम्मा कहता था) और मुझसे 4 साल बड़ी बेटी ( मेरी मुहबोली बहन- चनपटिया)को छोड़ गए | उस भगवान् जैसे माता-पिता की मदद ने इस स्नेह बंधन को कभी न तोड़ने दिया और मैं उनलोगों के साथ ही उस झुग्गी में रहने लगा | अम्मा खाना बनाती थी, चनपटिया दूसरे के घरों में झाड़ू पोछा कर कुछ पैसे घर ले आती थी और मैं एक बार फिर से निठल्ला हो गया क्यूंकि वो पंक्चर वाला धंधा मेरे से चला ही नहीं | ये तमाशा भी ज्यादा दिन न चला और अम्मा बासी खाना खा हैजा से ग्रसित हो चल बसी | चनपटिया भी वय के सपने संजोते हुए एकदिन मिथुन दा जैसे एक अपने से 8 साल बड़े हीरो का हाथ थाम मुंबई टहल दी | बाद में उसका कुछ अत पता न चला | ले दे के मेरे पास अपना निठल्लापन और वो झोपडी बची जो मेरी संपत्ति और सुख-दुःख का साथी था |
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चनपटिया को स्कूल पहुँचाने के कुछ फायदे हुए थे | मैं क्लास के बाहर बैठ घंटो अक्षर-कटूवा मास्टरों का कुछ ज्ञान सुन और देख लेता था | इस तरह धीरे धीरे अक्षरों से रूबरू होता रहा  और शने-शने लिखना-पढना सीख आज के नौजवानों सा रोजगार के सपने देखने लगा था | पर इस अधकट ज्ञान से क्या हासिल होना था सो चुप-चाप चौराहे पर बैठ टुकुर-टुकुर सबका मुँह देखता था और अपने ज्ञान का कद्र ढूंढ़ता था | आने-जाने वालो ने सिक्के फेंकने  शुरू किये तो लगा एक  नया धंधा मिल गया | अब तो रोज बैठने लगा और रोज सौ-पचास उगाहने लगा | इन पैसो से मैंने पेट भरने के अलावा एक नेक काम और किया रद्दी की दुकानों से  सस्ती किताबें खरीद पढने लगा | कोर्स,क्लास और डिग्री का तो पता नहीं पर हिल-हुज्जत और बकथोथी  के लायक कमाल का बन गया | आज आप जिधर भी नजर दौराओ ऐसे ज्ञान-पेलू लोग चौक-चौराहे और चाय की थडी पे पूरा गणतंत्र (भारत) की व्यवस्था करते अक्सर दिख जाएँगे | मैं भी बाचन हेतु यदा-कदा उसमे सरीक होने लगा | इसके अनेक लाभों में से कुछ लाभ मुझे भी मिला | वो कहते हैं ना संगत से गुण होत है संगत से गुण जात उसी सिद्धांत का फायदा होने लगा और कुछ लोगों ने अन्धो में काना राजा (ज्ञानी) के रूप में मेरी इज्जत करने लगे| 
एक दिन सोचा कुछ काम ढूंढा जाए,ये जिल्लत भरी जिंदगी कब तक,सो निकल पड़े काम का पता करने | दिन भर थका पर कोई जुगाड़ न मिला आखिरकार थक के स्टेशन के सामने बैठ गया | एक छोटा सा लड़का बगल में बैठ पेपर बेच रहा था | घंटो उसे ताकता रहा फिर धीरे से सरककर उससे पूछ लिया “अरे भाई इसे बेचने के पैसे मिलते है क्या तुम्हे” ? उसने हामी में सर हिलाया और आवाज लगाई “”” पढ़ लो ताजा खबर, सनसनीखेज खबर  .....”दमदम में चाक़ू घोंप पूरे परिवार का सफाया .........| लोग रुकते 2 रुपये देते और अपनी प्रति ले आगे बढ़ जाते | मैंने मौका देख फिर पूछा, क्या ये काम तुम मुझे भी दिलावा सकते हो क्या? मैं तुमसे उम्र में बड़ा हूँ और पढ़ा लिखा भी,हमदोनो मिलके ज्यादा कमाएँगे |  लड़के ने आँख तरेर कर देखा और नही में सर हिला दिया  | मैं थोरा गिरगिरा कर बोला,देखो भाई मैं गाँव से आया हूँ काम धंधा ढूंढ रहा हूँ मेरी मदद कर दो | उसने चिढ कर कहा, “मैं क्या तुम्हे कोई मंत्री दिख रहा  कि वादों की बौछार कर दूँ ...काम दिला दूँगा, घर दिला दूँगा ... दूर हटो उस्ताद देखेंगे तो आज का मुनाफा भी न देंगे |
मैंने कहा भाई गाँव से आया हूँ काम ढूंढ रहा हूं, इसलिए पूछा | कोई बात नहीं, मैं फिर से कद्दू जैसा मुँह बना के बैठ गया | इतने में एक बाइक पे दो लड़के आए और पेपर वाले लड़के की हाथ से पैसे की थैली छीनने की कोशिश करने लगे | पेपर वाला बच्चा जोर-जोर से चीखने चिल्लाने लगा | बाइक वाले एक लड़ने ने झट से चाकू निकाल लिया | अफरा तफरी मची तो मैं भी भागने के लिए हडबडा के खड़ा होना चाहा | घुटने की हड्डी ने सही सपोर्ट नहीं किया तो लड़खड़ा के बाइक के पीछे बैठे लड़के की पीठ से अपना मुंडी भीरा लिया |  बाइक का बैलेंस बिगड़ा और दोनों औंधे लेट गए सड़क पे | डर के मारे मैं तिगुने आवाज में दहाडा फाड़ने लगा | चेहरे पे मांस कम होने से मेरे सुरसा जैसे फटे मुँह को देख वो दोनों भी बिलबिलाने लगे | लोगो में  मेरे इस दुस्साहस ने उर्जा भर दी | दो-तीन लोग और लपके आनन-फानन में धुलाई कार्यक्रम शुरू हो गया | हर ढिशुम और फटाक की आवाज़ सून मेरे मुँह से डर के मारे दोगुना चीख निकलता था जिसे लोग हौसला अफजाई समझ और तेजी से हाथ पैर चलाने लगते थे | जब लोगो ने उसे घसीट कर पुलिस के हवाले किया तब जाके मेरी साँसे वापस आईं | अभी सांसो को संभाल भी ना पाया था कि भीड़ को चीरता एक तगड़ा सा आदमी आगे आया और लड़के से हाल पूछने लगा | लड़ने ने मेरी तरफ इशारा करके  बताया की इसकी वजह से वो बाइक वाले उससे पैसा नहीं छीन पाए | उस आदमी ने आगे बढ़कर मेरा पीठ थपथपाया और कहा “तुम्हारे जैसे परोपकारी और ईमानदार लोगों पे दुनियां टिकी है |  क्या करते हो ? मन में आया उसका थुथना कूच दूँ | एक तो आंत में साँस उतर नहीं रहा था ऊपर से भूखा, डर के मारे ब्लड-प्रेशर डाउन होने से काँप रहा था ऊपर से हमदर्दी का टॉनिक |
तंदूर जैसे उस आदमी के सहानभूति को देख कुछ और लोगों ने लगे हाथों आशीर्वाद डे देना उचित समझा सो इर्द-गिर्द इकठ्ठा हो लिया| भीड़ में से एक कुराफात पंजाबी के बच्चे ने मेरे पुट्ठे पे हाथ मारकर कहा “ ओए अंकल जी, आप तो गजब के फाइटर हो, एकदम से जमीन के समानांतर उड़ के दोनों को लिटा दिया, एकदम सुपर-मैन की तरह” | पहले तो खा जाने वाली निगाह से उसे देखा फिर चहरे पे थोड़ा नरमी लाके बच्चे से कहा “ऐसा मजबूरन करना पड़ता है बेटा (उसे मेरी मज़बूरी क्या पता?)”| जी में आया की उसके सर पे बंधे टोंटे को पकड़ के उसे जोर-जोर से झुलाऊं और पूछूं की कितना मजा आ रहा उड़ने में लेकिन गुस्से को मुट्ठी बांध दबोच लिया | एक नौजवान ने झट मेरे थूथने से थुथना सटा सेल्फी ली | मेरे सांसो के एहसास से उसका चेहरा ऐसा बना जैसे 103 डिग्री बुखार पे किसी ने उसके मुँह में गोटा नीम्बू निचोड़ दिया हो| मैं जानता था कुछ दूर जाने के बाद ये सबसे पाहिले इस तस्वीर को ही डिलीट करेगा पर आज के इस सेल्फी ट्रेंड को रोकाना उचित नहीं समझा| खैर 
उस तंदूर जैसे ताऊ ने पूछा क्या करते हो?
मन में आया कह दूँ गली-गली घूम के पेट खुजाता हूँ पर शालीनता से बोल दिया “सर काम ढूंढ रहा हूँ”|
ओहो-अच्छा ; कंहा तक पढ़े हो ?
मन में आया पीछू एक लात माडू और कह दूँ हम जैसे लोगों के पढने के लिए तेरे स्वर्गीय दद्दा ने कंही स्कूल खोल रखा था क्या ? फिर सच्चाई बता दी |
उसने जबाब दिया “कोई बात नहीं जरुरी नहीं सही शिक्षा सिर्फ स्कूल से ही मिले” आज-कल जितने एहादी-जेहादी होते हैं वो भी तो किसी स्कूल के बच्चे ही होते हैं,पर उनसे कंहा किसी का भला हो पाता है? उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा “तुम नेक दिल हो और बहादुर भी,मैं तुम्हारे लिए कुछ सोचता हूँ | उसने दूसरे दिन उसी जगह आके मिलने कहा |
कसम से ऐसा लगा की कान से सुनामी घूस के माथे में शोर कर रहा हो| मन किया लपक के उसका पाँव पकड़ लूँ और घसीटते हुए अपने झोपड़े में ले जाके कहूँ “कल क्यों चच्चा? आज-अभी-इसी वक़्त मिल के बता दो | मन राखी सावंत की तरह ता-थैया करने लगा| जी चाह उसके पाँव से लिपट के उसके जूते को जीभ से चाट-चाट के ऐनक सा चमका दूँ कि लोग आइना देखना ही भूल जाए | ख़ुशी दवाने के लिए थोड़ा मुँह खोला तो लार टपक गई जिसे झट कमीज के बाजू से पोंछते हुए मैंने कहा “जी जरुर”| 
भीड़ भी छंटने लगी थी | मैंने आनन-फानन में चरणस्पर्श का विधान पूरा किया और हांफते हुए उसके कार का दरवाजा खोल राम भक्त की तरह खड़ा हो गया| वो थुलथुलाते शारीर के साथ कार में समा गया फिर झटके से आगे बढ़ गया|
वो अखबार वाला लड़का फिर से अखबार के ढेर के बीच जा बैठा था | मैंने उसका कर्ज भी चुकता करना उचित समझा और लपक कर उसे अपने बांहों में भरके इमरान हाशमी की तरह  चोंच निकालके चूम लिया | 
उसने मेरे नाक में लगभग ऊँगली घुसेड़ते हुए मुझे अपने से दूर किया और बोला छिः-थू तुम्हारे मुँह से सड़े छांछ जैसी बू आती है,खबडदार जो फिर कभी ऐसी गलती की तो दोनों ठोढ़ी को जोड़ स्टेपल कर दूंगा | 
मैंने प्यार जता के बोला आज से तू मेरा भाई, मेरा लल्ला हम दोनों साथ में काम करेंगे | मैं लगभग मैना की तरह फुदकते घर की और विदा हो लिया | दोपहर से शाम उतर आया था पर आज तो भूख भी ना लगी थी | घर आके सीधा खटिये में झूल गया |  
अगले दिन मैं सुबह सुबह नहा कर , चमेली का तेल बालों में पोत आधे दांत वाले कंघे से झार, शर्ट को झूलते पेंट में खोंस, चनपटिया के रखे एक सूखे डीयो को बगले में रगड़ उस व्यक्ति से मिलने उसी जगह पे जा खड़ा हुआ |
वो अख़बार वाला लड़का अपने काम में मशगुल था| मैंने पूछा कैसे हो भाई? वो मुस्कुरा के बोला चकाचक | मैंने फिर पूछा वो कल वाले तुम्हारे बॉस आज आएँगे ना ?
लड़का मुँह पिचका के बोला पता नहीं, वो थोड़े कड़क जरुर हैं पर दिल से उदार हैं, किसी को निराश नहीं करते | अभी हम दोनों बात कर ही रहे थे कि  एक गाडी हमारे सामने आके रुकी और जब शीशा उतरा तो वही कल वाले थुलथुल चाचा का दो किलो का चेहरा दिखा | उसने पास बुलाया और गाडी में बैठने को कहा | मैं बैठ गया | किसी गाड़ी में बैठने का पहला एहसास था | गाडी चली तो मैं बीच बीच में गद्दे पर जोर लगा उछालने की कोशिश करने लगा |पूरा शहर सरपट पीछे भाग रहा था | जब कभी गाडी तेज हो टर्निंग पे घुमती, माथा सन्न कर उठता | कभी कभी तो सामने से आने वाली गाड़ी को देख आँखे मुंड लेता था पता नहीं वो कब हमारे ऊपर से पीछे चली जाती थी | गाड़ी ने जितनी बार धीरे होने के लिए ब्रेक लिया मैं अपना माथा अगले शीट पे पटक लेता था | पता नहीं लोग चैन से इसमे कैसे सवारी करते हैं?
 आधे घंटे चलने के बाद गाड़ी कोलकाता एक पुराने रोड को क्रॉस कर एक गली में प्रवेश किया | पत्थर की इंटों वाली गली| लगभग सारे मकान लाल रंग के | किनारे से बिना ढक्कन के बहता नाला | बाहर की तुलना में थोड़ी कम रोशनी | कुछ कबाड़ वालों की दुकाने और उसके आगे लगा ठेला| एक-आध सड़क किनारे के बरामदे पे बैठे आवारा कुत्ते | गली के बीचो बीच जुगाली करती खरी गाय | माथे पे मुरेठा मारे पीठ पर बोरा ढोते कुछ मजदूर और एक अजब सी अलसाती शांति | कुछ दूर गली में चलने के बाद गाडी फिर एक बार बाएँ मुड़ एक बहुत ही पुराने मकान के पोर्च में जा खरी हुई | मेरे कुछ सोचने से पहले ड्राईवर ने आके दरवाजा खोला | मैं अन्दर से हाथ जोड़े बाहर निकला ( हाथ जोड़ने की निहायत आदत जो थी)| चाचा जो पहले ही गाडी से  निकल के कदम आगे बड़ा चुके थे ने मुड़कर देखा और थोड़े घूरके हुए अंदाज में बोला “ हाथ जोड़ने की जरुरत नहीं, यंहा तुम किसी चुनाव में वोट मांगने नहीं आए हो” | मैंने करंट छु जाने वाली गति से हाथ नीचे करते हुए पेंट के पीछे के पॉकेट में ठूंस लिया| चाचा अन्दर जा चुके थे मैं भी पीछे लपका| गेट पे प्रेस का बोर्ड लगा था | अन्दर कचरे का अम्बार जैसा पन्ना पसरा पड़ा था | 8-10 लोग काम कर रहे थे | छत से लटका गदे जैसा पंखा घरघराते हुए अपने हिसाब से चल रहा था | एक तरफ अंग्रेजो के समय का एक छपाई मशीन खांसता हुआ बेहाल चल रहा था | मैं समझ गया वो लड़का यंही से छपने वाला पेपर बेच रहा था | मैंने कदम आगे बढाए | दो तीन शीशे का बना केबिन खाली पड़ा था | बीच हॉल में सफ़ेद रंग का एक बड़ा सा पेंडुलम वाला घडी टंगा था जिसकी टिक-टिक गूंजता सा महसूस हो रहा था|
मेरी नज़रे चाचा को तलाशने लगी जो हाल में आते ही ना जाने गधे की सिंघ के माफिक गायब हो गए थे | हाल में काम कर रहे दो चार जनों ने मुझे ऐसे घुर के देखा जैसे मैंने किसी को कटारी मार दी हो और मैंने  हाथ में खून से सना कटारी पकड़ रखा हो| सबकी नरभक्षी नजर से खुद को बचाते मैं एक आदमी जो घुटने पे हाथ रख बैठे बैठ के झाड़ू लगा रहा था उससे पूछ लिया “ बाबा वो कंहा गए”
बाबा ने चश्मा ऊपर करते पूछा “कौन”? #भूत का इंटरव्यू

#allalone
भूत का इंटरव्यू (हास्य-कथा)-भाग-2
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हाँ तो पंचर वाले ने मेरी बफदारी को परख,लगभग 5 सालों तक साथ दिया फिर पंचर बनाते हुए एक दिन जेठ की दोपहरी में निकल लिए | माथे पर अपनी बूढी बीबी ( जिसे अम्मा कहता था) और मुझसे 4 साल बड़ी बेटी ( मेरी मुहबोली बहन- चनपटिया)को छोड़ गए | उस भगवान् जैसे माता-पिता की मदद ने इस स्नेह बंधन को कभी न तोड़ने दिया और मैं उनलोगों के साथ ही उस झुग्गी में रहने लगा | अम्मा खाना बनाती थी, चनपटिया दूसरे के घरों में झाड़ू पोछा कर कुछ पैसे घर ले आती थी और मैं एक बार फिर से निठल्ला हो गया क्यूंकि वो पंक्चर वाला धंधा मेरे से चला ही नहीं | ये तमाशा भी ज्यादा दिन न चला और अम्मा बासी खाना खा हैजा से ग्रसित हो चल बसी | चनपटिया भी वय के सपने संजोते हुए एकदिन मिथुन दा जैसे एक अपने से 8 साल बड़े हीरो का हाथ थाम मुंबई टहल दी | बाद में उसका कुछ अत पता न चला | ले दे के मेरे पास अपना निठल्लापन और वो झोपडी बची जो मेरी संपत्ति और सुख-दुःख का साथी था |
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चनपटिया को स्कूल पहुँचाने के कुछ फायदे हुए थे | मैं क्लास के बाहर बैठ घंटो अक्षर-कटूवा मास्टरों का कुछ ज्ञान सुन और देख लेता था | इस तरह धीरे धीरे अक्षरों से रूबरू होता रहा  और शने-शने लिखना-पढना सीख आज के नौजवानों सा रोजगार के सपने देखने लगा था | पर इस अधकट ज्ञान से क्या हासिल होना था सो चुप-चाप चौराहे पर बैठ टुकुर-टुकुर सबका मुँह देखता था और अपने ज्ञान का कद्र ढूंढ़ता था | आने-जाने वालो ने सिक्के फेंकने  शुरू किये तो लगा एक  नया धंधा मिल गया | अब तो रोज बैठने लगा और रोज सौ-पचास उगाहने लगा | इन पैसो से मैंने पेट भरने के अलावा एक नेक काम और किया रद्दी की दुकानों से  सस्ती किताबें खरीद पढने लगा | कोर्स,क्लास और डिग्री का तो पता नहीं पर हिल-हुज्जत और बकथोथी  के लायक कमाल का बन गया | आज आप जिधर भी नजर दौराओ ऐसे ज्ञान-पेलू लोग चौक-चौराहे और चाय की थडी पे पूरा गणतंत्र (भारत) की व्यवस्था करते अक्सर दिख जाएँगे | मैं भी बाचन हेतु यदा-कदा उसमे सरीक होने लगा | इसके अनेक लाभों में से कुछ लाभ मुझे भी मिला | वो कहते हैं ना संगत से गुण होत है संगत से गुण जात उसी सिद्धांत का फायदा होने लगा और कुछ लोगों ने अन्धो में काना राजा (ज्ञानी) के रूप में मेरी इज्जत करने लगे| 
एक दिन सोचा कुछ काम ढूंढा जाए,ये जिल्लत भरी जिंदगी कब तक,सो निकल पड़े काम का पता करने | दिन भर थका पर कोई जुगाड़ न मिला आखिरकार थक के स्टेशन के सामने बैठ गया | एक छोटा सा लड़का बगल में बैठ पेपर बेच रहा था | घंटो उसे ताकता रहा फिर धीरे से सरककर उससे पूछ लिया “अरे भाई इसे बेचने के पैसे मिलते है क्या तुम्हे” ? उसने हामी में सर हिलाया और आवाज लगाई “”” पढ़ लो ताजा खबर, सनसनीखेज खबर  .....”दमदम में चाक़ू घोंप पूरे परिवार का सफाया .........| लोग रुकते 2 रुपये देते और अपनी प्रति ले आगे बढ़ जाते | मैंने मौका देख फिर पूछा, क्या ये काम तुम मुझे भी दिलावा सकते हो क्या? मैं तुमसे उम्र में बड़ा हूँ और पढ़ा लिखा भी,हमदोनो मिलके ज्यादा कमाएँगे |  लड़के ने आँख तरेर कर देखा और नही में सर हिला दिया  | मैं थोरा गिरगिरा कर बोला,देखो भाई मैं गाँव से आया हूँ काम धंधा ढूंढ रहा हूँ मेरी मदद कर दो | उसने चिढ कर कहा, “मैं क्या तुम्हे कोई मंत्री दिख रहा  कि वादों की बौछार कर दूँ ...काम दिला दूँगा, घर दिला दूँगा ... दूर हटो उस्ताद देखेंगे तो आज का मुनाफा भी न देंगे |
मैंने कहा भाई गाँव से आया हूँ काम ढूंढ रहा हूं, इसलिए पूछा | कोई बात नहीं, मैं फिर से कद्दू जैसा मुँह बना के बैठ गया | इतने में एक बाइक पे दो लड़के आए और पेपर वाले लड़के की हाथ से पैसे की थैली छीनने की कोशिश करने लगे | पेपर वाला बच्चा जोर-जोर से चीखने चिल्लाने लगा | बाइक वाले एक लड़ने ने झट से चाकू निकाल लिया | अफरा तफरी मची तो मैं भी भागने के लिए हडबडा के खड़ा होना चाहा | घुटने की हड्डी ने सही सपोर्ट नहीं किया तो लड़खड़ा के बाइक के पीछे बैठे लड़के की पीठ से अपना मुंडी भीरा लिया |  बाइक का बैलेंस बिगड़ा और दोनों औंधे लेट गए सड़क पे | डर के मारे मैं तिगुने आवाज में दहाडा फाड़ने लगा | चेहरे पे मांस कम होने से मेरे सुरसा जैसे फटे मुँह को देख वो दोनों भी बिलबिलाने लगे | लोगो में  मेरे इस दुस्साहस ने उर्जा भर दी | दो-तीन लोग और लपके आनन-फानन में धुलाई कार्यक्रम शुरू हो गया | हर ढिशुम और फटाक की आवाज़ सून मेरे मुँह से डर के मारे दोगुना चीख निकलता था जिसे लोग हौसला अफजाई समझ और तेजी से हाथ पैर चलाने लगते थे | जब लोगो ने उसे घसीट कर पुलिस के हवाले किया तब जाके मेरी साँसे वापस आईं | अभी सांसो को संभाल भी ना पाया था कि भीड़ को चीरता एक तगड़ा सा आदमी आगे आया और लड़के से हाल पूछने लगा | लड़ने ने मेरी तरफ इशारा करके  बताया की इसकी वजह से वो बाइक वाले उससे पैसा नहीं छीन पाए | उस आदमी ने आगे बढ़कर मेरा पीठ थपथपाया और कहा “तुम्हारे जैसे परोपकारी और ईमानदार लोगों पे दुनियां टिकी है |  क्या करते हो ? मन में आया उसका थुथना कूच दूँ | एक तो आंत में साँस उतर नहीं रहा था ऊपर से भूखा, डर के मारे ब्लड-प्रेशर डाउन होने से काँप रहा था ऊपर से हमदर्दी का टॉनिक |
तंदूर जैसे उस आदमी के सहानभूति को देख कुछ और लोगों ने लगे हाथों आशीर्वाद डे देना उचित समझा सो इर्द-गिर्द इकठ्ठा हो लिया| भीड़ में से एक कुराफात पंजाबी के बच्चे ने मेरे पुट्ठे पे हाथ मारकर कहा “ ओए अंकल जी, आप तो गजब के फाइटर हो, एकदम से जमीन के समानांतर उड़ के दोनों को लिटा दिया, एकदम सुपर-मैन की तरह” | पहले तो खा जाने वाली निगाह से उसे देखा फिर चहरे पे थोड़ा नरमी लाके बच्चे से कहा “ऐसा मजबूरन करना पड़ता है बेटा (उसे मेरी मज़बूरी क्या पता?)”| जी में आया की उसके सर पे बंधे टोंटे को पकड़ के उसे जोर-जोर से झुलाऊं और पूछूं की कितना मजा आ रहा उड़ने में लेकिन गुस्से को मुट्ठी बांध दबोच लिया | एक नौजवान ने झट मेरे थूथने से थुथना सटा सेल्फी ली | मेरे सांसो के एहसास से उसका चेहरा ऐसा बना जैसे 103 डिग्री बुखार पे किसी ने उसके मुँह में गोटा नीम्बू निचोड़ दिया हो| मैं जानता था कुछ दूर जाने के बाद ये सबसे पाहिले इस तस्वीर को ही डिलीट करेगा पर आज के इस सेल्फी ट्रेंड को रोकाना उचित नहीं समझा| खैर 
उस तंदूर जैसे ताऊ ने पूछा क्या करते हो?
मन में आया कह दूँ गली-गली घूम के पेट खुजाता हूँ पर शालीनता से बोल दिया “सर काम ढूंढ रहा हूँ”|
ओहो-अच्छा ; कंहा तक पढ़े हो ?
मन में आया पीछू एक लात माडू और कह दूँ हम जैसे लोगों के पढने के लिए तेरे स्वर्गीय दद्दा ने कंही स्कूल खोल रखा था क्या ? फिर सच्चाई बता दी |
उसने जबाब दिया “कोई बात नहीं जरुरी नहीं सही शिक्षा सिर्फ स्कूल से ही मिले” आज-कल जितने एहादी-जेहादी होते हैं वो भी तो किसी स्कूल के बच्चे ही होते हैं,पर उनसे कंहा किसी का भला हो पाता है? उसने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा “तुम नेक दिल हो और बहादुर भी,मैं तुम्हारे लिए कुछ सोचता हूँ | उसने दूसरे दिन उसी जगह आके मिलने कहा |
कसम से ऐसा लगा की कान से सुनामी घूस के माथे में शोर कर रहा हो| मन किया लपक के उसका पाँव पकड़ लूँ और घसीटते हुए अपने झोपड़े में ले जाके कहूँ “कल क्यों चच्चा? आज-अभी-इसी वक़्त मिल के बता दो | मन राखी सावंत की तरह ता-थैया करने लगा| जी चाह उसके पाँव से लिपट के उसके जूते को जीभ से चाट-चाट के ऐनक सा चमका दूँ कि लोग आइना देखना ही भूल जाए | ख़ुशी दवाने के लिए थोड़ा मुँह खोला तो लार टपक गई जिसे झट कमीज के बाजू से पोंछते हुए मैंने कहा “जी जरुर”| 
भीड़ भी छंटने लगी थी | मैंने आनन-फानन में चरणस्पर्श का विधान पूरा किया और हांफते हुए उसके कार का दरवाजा खोल राम भक्त की तरह खड़ा हो गया| वो थुलथुलाते शारीर के साथ कार में समा गया फिर झटके से आगे बढ़ गया|
वो अखबार वाला लड़का फिर से अखबार के ढेर के बीच जा बैठा था | मैंने उसका कर्ज भी चुकता करना उचित समझा और लपक कर उसे अपने बांहों में भरके इमरान हाशमी की तरह  चोंच निकालके चूम लिया | 
उसने मेरे नाक में लगभग ऊँगली घुसेड़ते हुए मुझे अपने से दूर किया और बोला छिः-थू तुम्हारे मुँह से सड़े छांछ जैसी बू आती है,खबडदार जो फिर कभी ऐसी गलती की तो दोनों ठोढ़ी को जोड़ स्टेपल कर दूंगा | 
मैंने प्यार जता के बोला आज से तू मेरा भाई, मेरा लल्ला हम दोनों साथ में काम करेंगे | मैं लगभग मैना की तरह फुदकते घर की और विदा हो लिया | दोपहर से शाम उतर आया था पर आज तो भूख भी ना लगी थी | घर आके सीधा खटिये में झूल गया |  
अगले दिन मैं सुबह सुबह नहा कर , चमेली का तेल बालों में पोत आधे दांत वाले कंघे से झार, शर्ट को झूलते पेंट में खोंस, चनपटिया के रखे एक सूखे डीयो को बगले में रगड़ उस व्यक्ति से मिलने उसी जगह पे जा खड़ा हुआ |
वो अख़बार वाला लड़का अपने काम में मशगुल था| मैंने पूछा कैसे हो भाई? वो मुस्कुरा के बोला चकाचक | मैंने फिर पूछा वो कल वाले तुम्हारे बॉस आज आएँगे ना ?
लड़का मुँह पिचका के बोला पता नहीं, वो थोड़े कड़क जरुर हैं पर दिल से उदार हैं, किसी को निराश नहीं करते | अभी हम दोनों बात कर ही रहे थे कि  एक गाडी हमारे सामने आके रुकी और जब शीशा उतरा तो वही कल वाले थुलथुल चाचा का दो किलो का चेहरा दिखा | उसने पास बुलाया और गाडी में बैठने को कहा | मैं बैठ गया | किसी गाड़ी में बैठने का पहला एहसास था | गाडी चली तो मैं बीच बीच में गद्दे पर जोर लगा उछालने की कोशिश करने लगा |पूरा शहर सरपट पीछे भाग रहा था | जब कभी गाडी तेज हो टर्निंग पे घुमती, माथा सन्न कर उठता | कभी कभी तो सामने से आने वाली गाड़ी को देख आँखे मुंड लेता था पता नहीं वो कब हमारे ऊपर से पीछे चली जाती थी | गाड़ी ने जितनी बार धीरे होने के लिए ब्रेक लिया मैं अपना माथा अगले शीट पे पटक लेता था | पता नहीं लोग चैन से इसमे कैसे सवारी करते हैं?
 आधे घंटे चलने के बाद गाड़ी कोलकाता एक पुराने रोड को क्रॉस कर एक गली में प्रवेश किया | पत्थर की इंटों वाली गली| लगभग सारे मकान लाल रंग के | किनारे से बिना ढक्कन के बहता नाला | बाहर की तुलना में थोड़ी कम रोशनी | कुछ कबाड़ वालों की दुकाने और उसके आगे लगा ठेला| एक-आध सड़क किनारे के बरामदे पे बैठे आवारा कुत्ते | गली के बीचो बीच जुगाली करती खरी गाय | माथे पे मुरेठा मारे पीठ पर बोरा ढोते कुछ मजदूर और एक अजब सी अलसाती शांति | कुछ दूर गली में चलने के बाद गाडी फिर एक बार बाएँ मुड़ एक बहुत ही पुराने मकान के पोर्च में जा खरी हुई | मेरे कुछ सोचने से पहले ड्राईवर ने आके दरवाजा खोला | मैं अन्दर से हाथ जोड़े बाहर निकला ( हाथ जोड़ने की निहायत आदत जो थी)| चाचा जो पहले ही गाडी से  निकल के कदम आगे बड़ा चुके थे ने मुड़कर देखा और थोड़े घूरके हुए अंदाज में बोला “ हाथ जोड़ने की जरुरत नहीं, यंहा तुम किसी चुनाव में वोट मांगने नहीं आए हो” | मैंने करंट छु जाने वाली गति से हाथ नीचे करते हुए पेंट के पीछे के पॉकेट में ठूंस लिया| चाचा अन्दर जा चुके थे मैं भी पीछे लपका| गेट पे प्रेस का बोर्ड लगा था | अन्दर कचरे का अम्बार जैसा पन्ना पसरा पड़ा था | 8-10 लोग काम कर रहे थे | छत से लटका गदे जैसा पंखा घरघराते हुए अपने हिसाब से चल रहा था | एक तरफ अंग्रेजो के समय का एक छपाई मशीन खांसता हुआ बेहाल चल रहा था | मैं समझ गया वो लड़का यंही से छपने वाला पेपर बेच रहा था | मैंने कदम आगे बढाए | दो तीन शीशे का बना केबिन खाली पड़ा था | बीच हॉल में सफ़ेद रंग का एक बड़ा सा पेंडुलम वाला घडी टंगा था जिसकी टिक-टिक गूंजता सा महसूस हो रहा था|
मेरी नज़रे चाचा को तलाशने लगी जो हाल में आते ही ना जाने गधे की सिंघ के माफिक गायब हो गए थे | हाल में काम कर रहे दो चार जनों ने मुझे ऐसे घुर के देखा जैसे मैंने किसी को कटारी मार दी हो और मैंने  हाथ में खून से सना कटारी पकड़ रखा हो| सबकी नरभक्षी नजर से खुद को बचाते मैं एक आदमी जो घुटने पे हाथ रख बैठे बैठ के झाड़ू लगा रहा था उससे पूछ लिया “ बाबा वो कंहा गए”
बाबा ने चश्मा ऊपर करते पूछा “कौन”? #भूत का इंटरव्यू

#allalone