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बारिशें आ टपकी बादलों की ओट में बूंद बूंद से मह

 बारिशें आ टपकी 
बादलों की ओट में

बूंद बूंद से महकी धरती
कण कण पानी भरती

जम गई धूल की कतार 
हल्की बहती सुरम्य बयार

जख्मी है हवाएं कैसे
प्रकृति की चोट में।।

©Shilpa yadav
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