मौत के बाद खामोशी पसरी मिली हैं। रोटियां पटरियों पर बिखरी मिली हैं। दाम देकर सरकारें निर्दोष हो गई हैं, गरीब की जान देश में बिकती मिली हैं। मजदूर को उसके घर पहुंचाना ही पड़ेगा, चुनाव वाले वादों को निभाना ही पड़ेगा, देश की रीढ़ की हड्डी है हमारे ये मजदूर, हर एक की जान को बचाना ही पड़ेगा। घर बैठे जमीनी हकीकत तुम नहीं जानते, दर्द भटकते गरीबों का तुम नहीं पहचानते, करते मदद अगर तुम शहर के मजदूरों की, क्यों वो लाचार रोटी के लिए खाक छानते। -Keshav #Labourday #trainaccident #labourdied #labour