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अंदाज़ तेरी बे–रुख़ी का आज़ तक समझ ना पाई। ऐसी है

अंदाज़ तेरी बे–रुख़ी का आज़ तक समझ ना पाई।
ऐसी है बेबसी कि चाहत दिल से निकल ना पाई।

बेइंतहा मोहब्बत था एक दूजे के दरमियांँ।
क्या मजबूरी आई कि तेरे दिल में बे–रुख़ी छाई।

बेवफ़ाई में वो मुझे महफ़िल से नज़रअंदाज़ चल दिए कहीं।
उनके बे–रुख़ी की इंतहा से टूट कर बिखर गई।

बेवक़्त बेवजह दे दिया ज़ख्म आपने ऐसा गहरा।
ख़ुद से मैं अनजान ज़िंदगी भी अजनबी बन गई।

वफ़ा से बेवफ़ाई के सफ़र में दिल तोड़ दिया आपने एक पल में।
तेरा यूँ नज़रअंदाज़ करना, मेरे दिल में खंजर सी चुभ गई।

वक़्त ने धीरे धीरे हमको भी तुम्हें भुलाने का मौका दे दिया।
फ़िर से ज़िंदगी से मोहब्बत करना और जीना सीख गई।



 ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1061 #collabwithकोराकाग़ज़

♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊

♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा।

♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।
अंदाज़ तेरी बे–रुख़ी का आज़ तक समझ ना पाई।
ऐसी है बेबसी कि चाहत दिल से निकल ना पाई।

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उनके बे–रुख़ी की इंतहा से टूट कर बिखर गई।

बेवक़्त बेवजह दे दिया ज़ख्म आपने ऐसा गहरा।
ख़ुद से मैं अनजान ज़िंदगी भी अजनबी बन गई।

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तेरा यूँ नज़रअंदाज़ करना, मेरे दिल में खंजर सी चुभ गई।

वक़्त ने धीरे धीरे हमको भी तुम्हें भुलाने का मौका दे दिया।
फ़िर से ज़िंदगी से मोहब्बत करना और जीना सीख गई।



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