सुबह उठते ही रोज़ दर्पण में देखते हैं, वो अपनी कोई नई छाप तो नहीं छोड़ गया, बैठकर तसल्ली से इसकी तफ्तीश करते हैं, पुराने निशान जो मिटाते रहे पर मिटाए ना गए, एक आवरण उसे ढकने के लिए पहनते हैं| @रुचि झा #पुराने_घाव