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उसकी हाँ में हाँ मिलाकर मैंने हर बार उसकी बातों को

उसकी हाँ में हाँ मिलाकर मैंने हर बार उसकी बातों को मान दिया,
मेरा कोई वज़ूद नही ये सोचकर उसने मेरी
हाँ का अपमान किया...!
किसी भी प्रेम में समर्थन किस हद तक 
सही रहता है ??
-हम हमेशा से सुनते आए हैं कि प्रेम अंधा होता है ,मगर मेरे विचार से प्रेम में पड़कर अपने अस्तित्व को नकारना न्यायोचित नही होगा।
प्रेम के वशीभूत होकर अगर हर बार हाँ में हाँ मिलाएं तो ये स्वयं के साथ अन्याय होगा ।
इससे सामने वाला हमारी अहमियत को नकार देगा ,और अप्रत्याशित रूप से हमपर हावी होने का प्रयास करेगा ,
और अगर प्रेम समर्पण माँगता है तो समर्पण की भावना अगर दोनों तरफ़ से होगी तभी प्रेम सार्थक होगा ।अन्यथा प्रेम प्रेम नही बोझ बन जायेगा ।और गलत बात का समर्थन केवल अलगाव उत्पन्न करता है प्रेम नही ।ऐसे प्रेम के  कोई मायने नही जिसमे सिर्फ झुकाव एकतरफा हो ऐसा प्रेम ही अंधा प्रेम कहलाता है ।।

-पूनम आत्रेय

©poonam atrey
  #प्रेम_पर_चिंतन 
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