सर्द दिसंबर कम्बल ओढ़े हसरतों ने ख़्वाब नया चुना है शायद सर्द दिसंबर की तन्हा रातों ने नज़्म कोई बुना है शायद के रोती है अँखियाँ,हर पल अर्ज़ी कोई अनसुना है शायद अर्ज़ी #पारस #दिसंबर #अर्ज़ी