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क्या कहूं,क्या लिखूं,क्या जिंदगी की बिसात है मोहरे

क्या कहूं,क्या लिखूं,क्या जिंदगी की बिसात है
मोहरे सजाए बैठे सभी पर चाल हर अज्ञात है

आज है वो कल नहीं,कल का कोई हल नहीं 
कल,आज,कल जिंदगी बस इतनी सी बात है

हर वक्त खुशियों के मायने रहें ये संभव नहीं
कभी चांदनी है जिंदगी कभी स्याह काली रात है

लेकर रोज ढेरों निकलती ये उम्मीदों का कारवां
मिल जाए तो है खुशियों वरना गहरा आघात है

स्याही से लिखी हो या लिखी हो जज्बातों से
अनायास करवटें लेती जिंदगी बड़ी अकस्मात है।

©Amar Deep Singh
  #lifeisunpredictable