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अक्षर से सीखा हमने मिलजुल कर शब्द है बनना । शब्दो

अक्षर से सीखा हमने मिलजुल कर शब्द है बनना ।
शब्दो से सीखा हमने मिलजुल कर वाक्य है बनना ।
वाक्यो से सीखा हमने मिलजुल कर भाषा बनना ।
भाषा से सीखा हमने इस रिश्तो की परिभाषा बनना ।
रिश्तो से सीखा हमने  हंसना रोना हमदम बनना ।
हंसने रोने से याद है आया मां बापू की प्यार और डांट 😑
उससे सीखा संस्कृति और सभ्यता अपने देश की ।
संस्कार से सीखा हमने इस लोकतंत्र की अद्भुत माया ।
लोकतन्त्र से सीखा हमने इस जनमानस से विधि-विधान ।
विधियों से सीखा हमने सत्य कर्म और विज्ञान ।
अभी सीखना बाकी है कई वेद और पुराण ।।
बोलो जय श्री राम, जय श्री राम ।।
गंगवार अनिल कवित्त
अक्षर से सीखा हमने मिलजुल कर शब्द है बनना ।
शब्दो से सीखा हमने मिलजुल कर वाक्य है बनना ।
वाक्यो से सीखा हमने मिलजुल कर भाषा बनना ।
भाषा से सीखा हमने इस रिश्तो की परिभाषा बनना ।
रिश्तो से सीखा हमने  हंसना रोना हमदम बनना ।
हंसने रोने से याद है आया मां बापू की प्यार और डांट 😑
उससे सीखा संस्कृति और सभ्यता अपने देश की ।
संस्कार से सीखा हमने इस लोकतंत्र की अद्भुत माया ।
लोकतन्त्र से सीखा हमने इस जनमानस से विधि-विधान ।
विधियों से सीखा हमने सत्य कर्म और विज्ञान ।
अभी सीखना बाकी है कई वेद और पुराण ।।
बोलो जय श्री राम, जय श्री राम ।।
गंगवार अनिल कवित्त

कवित्त