ना जाने कब थमेगा यह इंतज़ार कब टूटेगा निराशा का ये ज़िंदान टूट रही है अब मेरी भी हिम्मत कहर ले रहा है अब मेरी जान (अनुशीर्षक में) एक डर मन पर है हावी ना जाने होगा अब आगे क्या क्यों हवा में जहर घुला है अंज़ाम का अब किसे पता है चारों ओर हैं पसरा घना अँधेरा क्यों खुशियों पर लगा है पहरा दुनिया मे है तन्हाई का आलम