मैं वो एहसास लिखना चाहती हूं जो तुमसे कभी कहा ही नही हृदय में विराजमान है तुम्हारी अप्रतिम मूर्ति और तुम्हें पता तक नहीं पूजती हूँ प्रातः और संध्या तुम्हें लेकिन इस विह्वल मन की पुकार तुम तक पहुचती ही नहीं कैसे बताऊं कैसे पीड़ा दिखाऊँ तुम्हें इस हृदय की वेदना के भाव तुम तक पहुँचते ही नहीं लिख कर छोड़ देती हूं पन्नों पर मन की अभिव्यक्ति के तुम कभी तो पढ़ोगे जो डायरी तुमने कभी उठाई तक नहीं ©Richa Dhar #aaina एहसास