मेरे अल्फाज़ मेरे एहसास से विपरीत थे वो शायद अपने आप मे ही एक गीत थे.. बह तो रहे थे वो पानी मे नाव के जैसे पर वो भी नदी किनारे लगे पौधे की जड़ की तरह जटिल और संकीर्ण थे @आखिरी पन्ना ©दीपक