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अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे, तेरा मुजरिम ह

अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे,
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे ।
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे ।
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी,
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे ।
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको,
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे ।

- नज़ीर वाक़री via bkb.ai/shayari

©Jeetu Jwala
  mai tera mujrim hu
jeetujwala7970

Jeetu Jwala

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mai tera mujrim hu #लव

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