घुमा फिरा कर ही कहे जा रहे हो , जो दिल में है बोल क्यों नहीं देते, सियासी स्याही से हीे लिखें जा रहे हो, दिल के खूं से सच्चाई लिख क्यों नहीं देते, अब भी भगवे और हरे को ही देख रहे हो , बेचारी की फटे कपडे भी देख क्यों नहीं लेते , सियासी चाटुकारता ही किये जा रहे हो, कुछ पल के लिए ही ,ये छोड़ क्यों नहीं देते, शब्दों के दुनिया मे उलझे ही जा रहे हो , कलम को जमी पे उतार क्यों नहीं लेते, मर्यादित शब्दों से ही वार किए जा रहे हो , कलम को खडग बना क्यों नहीं लेते, #बलात्कार #चाटुकारिता #कविगण