तेरे पायल की रुनझुन बहुत सताती हैं मुझें तेरें कंगन की खनक याद आती हैं... गीले केश में होती हो जब हर सुबह तुम तेरें गर्म साँसों की खुशबू हमें बहकती हैं... माथे की इस छोटे से बिंदियाँ के क्या कहने लगता हैं हमें इशारों से ये पास बुलाती हैं... तुम्हारें ग़ुलाब की पंखुड़ियों से ये गीले होठ इसकी ये लाली मेरा अब सब्र आजमाती हैं... क्या कहूँ अल्फ़ाज़ भी नहीं बचें मुझमें कुछ तुम्हारें मीठी मुस्कान से जान पर बन आती हैं। रूप... श्रृंगार... प्रेम ❤️ Follow me...